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Sunday, 2 November 2014

दास्ताँ-ए-गूगल- आलोक कुमार वर्मा

गूगल...गूगल....
क्या है ये गूगल?

सुनो गौर से गूगल प्यारे-

पेज और ब्रिन ने दिया ये तोहफ़ा नायाब
जिससे पूरा होता हर एक ख्वाब
देख जमाने ने ऐसा पकड़ा
लो,अब हर इंसान इससे जकड़ा

अठरह साल है इसकी उमरिया
करती बातें लाखों की
ना इसका कोई मोल-भाव
बस 'खोजना' ही पर्याय

रात-अँधेरा;  सुबह- सवेरा
कर लो सुमिरन हर बेला
देश-दुनिया; धरती-आकाश
इसके अंदर सारा संसार

अपनी भावना न अटकाओ
जो चाहो; वो दबाओ
अरसो- बरसो का इतिहास
पल में कराता है एहसास

बदल गया वो जमाना
जब गुरु देते थे ताना
अब,गूगल बाबा का है सहारा
बेचारा 'गुरु' भी गूगल का मारा

अरसों- बरसों; भूली -भटकी
देख इसे किताब प्रेस में अटकी
इसका ज्ञान बड़ा बलशाली
दुनिया का हर ज्ञान है भर डाली

जीमेल,ओर्कुट,क्रोम,पिकासा
सब हैं गूगल के दासा
सैकड़ों भाषाओं में है बोलता
एक से दुसरे को खोलता

अब, बंद करो गूगल की कहानी
आ गयी फेसबुक उसकी नानी


 💥    -: कवि :-    💥

   
आलोक कुमार वर्मा
कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज
दिल्ली विश्वविद्यालय

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