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जो जहाँ से उठता है...(गुंजन श्री)
जो जहाँ से उठता है, वहीँ से टूट सकता है,
ज़रा बचके रहिये साहब, कोई भी लुट सकता है।
बड़ा परेशां इन्सां है, अपने दिल की दुनिया से,
जो माने, मना लीजे, कोई भी छुट सकता है।
शिकस्त पाकर भी ख़ुश है, अजीब दुनियादारी है,
हार-जीत, हंसी-ख़ुशी, इनसे कोई भी रूठ सकता है...???
गुंजन श्री
युवा साहित्यकार
पटना (बिहार)
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