उड़ चला मेरा उत्साहित मन
कल्पना के नील गगन में
बंद आँखें, उड़ता मन मेरा
खिले चमन के गगनांगन में
कल्पना के नील गगन में
बंद आँखें, उड़ता मन मेरा
खिले चमन के गगनांगन में
बिना डोर की पतंग है उड़ती
मन मेरा कुछ ऐसे उड़ता
सागर की लहरों की भांति
इधर उधर है मचला करता
नभचारियों की टोली में भी
जा जा कर मन मेरा जुड़ता
यहाँ वहाँ यह दिशाहीन सा
खोया खोया सा है फ़िरता
मन मेरा कुछ ऐसे उड़ता
सागर की लहरों की भांति
इधर उधर है मचला करता
नभचारियों की टोली में भी
जा जा कर मन मेरा जुड़ता
यहाँ वहाँ यह दिशाहीन सा
खोया खोया सा है फ़िरता
मेरा उड़ता उत्साहित मन
पता नहीं क्या ढूंढा करताअबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं. |
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